Sunday 27 September 2009

छुट्टी का एक दिन और बर्गमैन से मुलाकात

आज का दिन बस ऐसे ही गुजर गया। बहुत कुछ करने की योजनाएं बनाते और कुछ भी न करते हुए। लिव टू टेल द टेल, सीन्‍स फ्रॉम ए मैरिज, सोशलिज्‍म इस ग्रेट और कसप के डीडी और बेबी के साथ। सबके दरवाजे खटखटाए, लेकिन किसी के ठिकाने पर मन रमा नहीं। इधर-उधर टहलती रही। सिर्फ दो टोमैटो सैंडविच और तीन कप ब्‍लैक कॉफी पर दिन बसर किया। कल मैंने सोचा था कि आज मुझे कुछ करना है लेकिन आज समझ नहीं आया कि आज क्‍या करना है। कुछ हुआ भी नहीं।

तीन बजे के आसपास मैंने कुछ देर सोने की सोची और वहीं किताबों के ढेर के बीच जमीन पर ही दो तकिया डाल दोहर ओढ़कर ठंडी फर्श पर पसर गई। मोबाइल में चार बजे का अलार्म था। दिन खराब नहीं होने दूंगी। उठकर उस संसार में वापस लौटना है, जहां मुझे लगता है कि मेरा सबसे ज्‍यादा मन लगता है।

एक घंटे की उस नींद पर पूरा एक उपन्‍यास लिखा जा सकता है। जाने किन किन ठिकानों पर हो आई। कहां-कहां भटकी। मैंने देखा कि मैं खेत और कब्रिस्‍तान जैसी दिखती किसी जगह पर हूं। वहां मैं इंगमार बर्गमैन से मिली। वह मेरी भाषा नहीं बोल रहे थे लेकिन मुझे ऐसा भी नहीं लगा कि उसकी भाषा मुझे समझ में नहीं आ रही। फिर अचानक कहीं से लिव उलमैन आ गई। बोली, मैं बर्गमैन की नई फिल्‍म में काम कर रही हूं लेकिन तुम यहां पर क्‍या कर रही हो। बर्गमैन ने मेरा हा पकड़कर रोका और कहा कि मैं तुम्‍हें अपना कमरा दिखाता हूं। लेकिन कमरा कहीं खो गया। बस मेरे हथेलियों में बर्गमैन की पकड़ बची रह गई। फिर मैंने देखा कि मेरी मां अस्‍पताल में हैं। वहां मैंने कपड़े सुखाने वाली एक डोरी बांध रखी है और उस पर कुछ अजीब अजीब आकार के कपड़े सूख रहे हैं। वो अस्‍पताल कुछ कुछ रेलवे स्‍टेशन जैसा दिख रहा था। बहुत साफ सुथरा था, लेकिन वहां टे्न और यात्री आ-जा रहे थे। मेरे पास एक ऊंची टेबल थी जो अस्‍पताल का कोई कर्मचारी मुझसे हड़पना चाहता था और मैं नहीं दे रही थी। फिर वहां किसी डॉक्‍टर से मेरा झगड़ा हो गया। मैंने बर्गमैन को आवाज दी। मां ने कहा अपने पति को बुलाओ। पति तो है ही नहीं। लेकिन सपने में वो भी कहीं से नमूदार हुआ। याद नहीं वो कैसा था। मैं बर्गमैन का हाथ पकड़कर भाग जाना चाहती थी। अस्‍पताल में टे्न आ रही थी। चारों तरफ बहुत शोर हो रहा था।

तभी अलार्म बजा और मेरी नींद खुल गई।

उस एक घंटे में ही बीच में एक एसएमएस आया था और उस एसएमएस की टोन को मैंने अलार्म समझकर बंद किया था और फिर सो गई थी। नींद में ही मेरे दिमाग में यह भी चल रहा था कि चार बजे का अलार्म तो कब का बज चुका, मैं फिर भी सोए जा रही हूं। लग रहा है यह नींद कभी खत्‍म नहीं होगी। जाने कितना समय गुजरता जा रहा है और मेरी आंख नहीं खुल रही। मैंने सीन्‍स फ्रॉम ए मैरिज की मैरिएन से लौटकर आने को कहा था। अब शायद मैं कभी सीन्‍स फ्रॉम ए मैरिज दोबारा नहीं पढ़ पाऊंगी।

और तभी वह अलार्म बज गया। चार बज रहे हैं। दो टोमैटो सैंडविच कब के पच चुके। मैं कुछ खाना चाहती हूं, लेकिन कुछ बनाना नहीं चाहती। सिर्फ एक कप कड़क ब्‍लैक कॉफी के साथ यह पोस्‍ट लिख रही हूं।