Wednesday 14 November 2007

किस्‍सा दीदी-जीजा का

(अभय और तनु दीदी से क्षमा सहित)

अभय ने अपने ब्‍लॉग पर मेरा परिचय देते हुए बताया था कि मुझसे उनकी मुलाकात और जान-पहचान मुंबई की है।

अभय की पत्‍नी तनु दीदी से मेरी पहचान इलाहाबाद में हुई थी। एस। एन. डी. टी. हॉस्‍टल में दो साल वो मेरी लोकल गार्जियन थीं।

जब देखो तब अनुशासन का डंडा चलाने वाली खड़हुस वॉर्डन को ये बताया गया था कि तनु दीदी मेरी मौसी की बेटी हैं। मौसी प्राण पियारी हैं, मां की सगी बहन हैं। तनु दीदी, सगी मौसी की लड़की हैं। खून का रिश्‍ता है। मैं पांडे, वो तिवारी, दोनों ब्राम्‍हण। शक की कोई गुंजाइश नहीं। वॉर्डन ने स्‍मार्ट, लंबी मौसी की लड़की की बातों पर भरोसा किया, एडमिशन मिल गया।

बात यहीं खत्‍म नहीं होती। बात यहां से शुरू होती है। तनु दीदी, मेरी दीदी तो अभय तिवारी हुए जीजाजी। वॉर्डन का सबसे प्रिय शगल था, लड़कियों की फैमिली हिस्‍ट्री के बारे में सारे डीटेल आंखें मटका-मटकाकर सुनना।

मुझसे बोलीं, तुम्‍हारी दीदी शादीशुदा हैं ?
हां।

जीजाजी का क्‍या नाम है ?
अभय तिवारी।
क्‍या करते हैं ?
सीरियल और फिल्‍में लिखते हैं।
और दीदी, हाउसवाइफ ?
नहीं, वो भी लिखती हैं।
क्‍या ?
जी में आया, कह दूं, आपका सिर। फिर मैंने दीदी की एक पतिव्रता भारतीय नारी वाली इमेज पेश की। जीजाजी के साथ ही काम करती हैं। उनकी मदद करती हैं, लिखने में।

वॉर्डन हंसकर बोली, फिर खाना कौन बनाता है?
मैंने कहा, दीदी ही बनाती हैं। शी इज वेरी होमली एंड डेडीकेटेड वाइफ।

(तनु दीदी, ये पढ़कर चप्‍पल उतारकर मारेंगी मुझे, इस बार मुंबई गई तो।)

मेरी दीदी और जीजाजी का किस्‍सा यहीं खत्‍म नहीं होता। इस रिश्‍ते को अभी दो साल और चलना था। हर लड़की बातों में कभी-न-कभी पूछती, मनीषा, हू इज योर लोकल गार्जियन?
मेरी दीदी।
मैरिड ?
यस।
वॉव.....

दीदी-जीजा, भईया-भाभी में लड़कियों को बड़ा इंटरेस्‍ट होता था। नई ब्‍याही दीदी अगर फ्लोरिडा में भी हो, तो हर हफ्ते नियम से उसका हालचाल पूछा जाएगा, जीजाजी का भी। जान-न-पहचान, लेकिन कंसर्न ऐसा कि पूछो मत। लेकिन ये कंसर्न बुआ, ताई, दादी, नानी के लिए तो नहीं होता था। ताईजी क्‍या करती हैं, और ताऊजी क्‍या करते हैं, किसी को पड़ी नहीं थी। लेकिन दीदी के साथ जीजाजी की और भईया के साथ भाभी की बातें किए बगैर लड़कियों को रात में नींद नहीं आती थी।

मुझसे भी मेरी दीदी-जीजा के किस्‍से पूछे गए और मैंने सुनाए भी। कुछ सच और ज्‍यादातर मनगढंत।
मणिपुरी रूममेट रॉबिता पूछती, तुम्‍हारी दीदी का लव मैरिज है।
मैं कहती, हां।

लड़कियां हीं-हीं करती चारपाई पर उछलतीं।

वो कहां मिले।
मैं क्‍या बताती, कहां मिले। तुक्‍का मारा, साथ पढ़ते थे।

मान गए शादी के लिए।
हां, खुशी-खुशी।

और भी ढेरों सवाल जीजाजी के स्‍वभाव-चरित्र की पड़ताल के मकसद से पूछे जाते।


तुम्‍हारे जीजू का नेचर कैसा है?
वो रोमांटिक हैं ?
दीदी का ख्‍याल रखते हैं ?
तुम्‍हारे जीजू दीदी के साथ मूवी देखने जाते हैं ?
जीजू खाना बनाते हैं ?
जीजू गाना गाते हैं ?

जीजा पुराण बड़ा लंबा चलता था। मनीषा पांडेय के जीजाजी अभय तिवारी पर एस.एन.डी.टी. हॉस्‍टल की लड़कियों ने पीएचडी कर डाली।

हॉस्‍टल छूटा। दीदी-जीजा के किस्‍सों से भी निजात मिली। बाद में वर्किंग वीमेन हॉस्‍टल में न लोकल गार्जियन का पचड़ा था न लड़कियों को दीदी-जीजा की कहानियों में कोई इंटरेस्‍ट।

मैं ये बातें लगभग भूल ही गई थी, लेकिन चूंकि अब गुजरा हुआ बहुत कुछ याद आ रहा है और चूंकि मैं गड़े मुर्दे उखाड़ ही रही हूं तो ये भी सही।

अभय, दो साल तक जीजाजी थे। फिर वापस मित्र हो गए।

अगर वॉर्डन भी ब्‍लॉग पढती होगी, तो मेरी ऐसी-की-तैसी।

19 comments:

कथाकार said...

रोचक. आपमे व्‍यंग्‍य लिखने की भरपूर संभावनाएं हैं. लगी रहें. आप वही मनीषा जी हैं जो दिल्‍ली पुस्‍तक मेले में संवाद प्रकाशन के स्‍टाल पर मिली थीं. कहां हैं आजकल और क्‍या शगल है.

कथाकार said...

अच्‍छज्ञ लिखा है. कहां हैं आजकल आप और क्‍या शगल है.

अनिल रघुराज said...

रोचक प्रसंग। रिश्ते तो यूं ही नए-नए बनते और बिगड़ते हैं। रिश्ते की ऊष्मा ताजिंदगी लुभाती है।

Atul Chauhan said...

ब्लागजगत में आपका स्वागत है, आपकी लेखन शैली वाकई अच्छी है। बस खैर मनाएं की वार्डन से कभी मुलाकात न हो। उमदा डायरी लेखन/शब्द संयोजन के लिये बधाई स्वीकार करें।

अभय तिवारी said...

जीजाओं की कहानी अक्सर बड़ी रूमानी बना दी जाती हैं.. मेरी तकलीफ़ यह रही है कि मेरी अपनी साली ने कभी मुझे जीजा नहीं कहा.. हमेशा नाम लेकर पुकारा। और देखो उन दिनों जब कि मैं टेक्नीकली तुम्हारा जीजा बना हुआ था.. तब भी तुमने भी कभी जीजा नहीं कहा..

Anonymous said...

अच्छा हुआ कि हम और वे सारे लोगों का कभी सामना नहीं हुआ वरना बहुत सारे भ्रम टूट जाते।

काकेश said...

आपके जीजा जी हमें भी बहुत प्यारे हैं.लेकिन आपने उनकी अच्छी पोल पट्टी खोल दी लड़कियों के सामने.

Neelima said...

अभय जी तनु जी ! जरूरत पडने पर आप हमारे भी जीजा दीदी बनेंगे न ?

चंद्रभूषण said...

ये सब क्या हो रहा है अभय बाबू? भरे चौराहे मर्दों की पगड़ी उछालती है, अपनी साली को कंट्रोल क्यों नहीं करते?

ALOK PURANIK said...

भई अभय जी के बारे में आपका ये कमेंट बहुत बढिया है कि -शी इज वेरी होमली एंड डेडीकेटेड वाइफ। इससे बेहतर कांप्लीमेंट और क्या होगाजी। अभयजी की जय हो।

Sanjeet Tripathi said...

सही रहा यह भी!!

@अभय जी आप पे हॉस्टल की कन्याओं ने पी एच डी भी कर डाली और आपको खबर भी नही लगी!!

Tarun said...

मजेदार रहा जीजा-साली का ये आलेख, इस को पढ़ने से पहले हमें एक बात का संशय था वो आज पक्का हो गया। अभय-तनु (निर्मल-आनंद फेम) जी, जल्दी से बता दीजिये आपने कौन से सीरियल के लिये लिखा है फिर तय किया जायेगा कि आपको मार दिया जाय या छोड़ दिया जाय। ;)
(क्योंकि हम खार खाये बैठे हैं इन सीरियलस से)

मनीषा पांडे said...

अरे अभय, मुझे नहीं पता था कि आप इस बात को लेकर सेंटी हो जाएंगे। अभी भी क्‍या बिगड़ा है, अभी बुलाए देती हूं, जीजू। ठीक ना.....
वैसे अभय बोलना ज्‍यादा अच्‍छा लगता है। लगता है बड़ी हो गई हूं, बड़े लोगों के बराबर। इतनी कि सबको नाम लेकर बुलाती हूं।

सूरज प्रकाश जी, मैं वही मनीषा हूं, संवाद प्रकाशन के स्‍टॉल वाली। आजकल वेबदुनिया में असिस्‍टेंट फीचर एडीटर हूं और इंदौर रह रही हूं। आपका ब्‍लॉग भी देखती रहती हूं।

चंद्रभूषण जी, आप खामखा जीजाजी को भड़का रहे हैं। वो क्‍यूं कंट्रोल करने लगे मुझे, उल्‍टे दीदी उनको कंट्रोल करेंगी।

आलोक पुराणिक जी, डेडीकेटेड हाउस वाइफ और होमली मेरी दीदी हैं, जीजाजी नहीं।

राजीव जैन said...

चलिए दो रिश्‍तेदारियां पता चली और इतने खूबसूरत व्‍यंग्‍य पढने को मिला सो अलग। वैसे मैं यहां मेरे ब्‍लॉग पर एक टिप्‍पणी का पीछा करते हुए पहुंचा।

बधाई
अच्‍छा लिखती हैं आप

आनंद said...

आपके लेखन में एक नई ताजगी है। अपना बिंदास लहजा कायम रखिए और बराबर लिखते रहिए। आपके ब्‍लॉग को अपनी पसंदीदा सूची मे शामिल कर लिया है। - आनंद

अनूप शुक्ल said...

बहुत मजेदार। अच्छा लगा पढ़कर। शानदार संस्मरण!

सारंग उपाध्‍याय said...

Are vah didi aap to kahti thi kavita se pala nahi padata ab likh bhi rahi ho to essa... sachii kafi achhi kavita hai....

पुनीत ओमर said...

ये सब क्या है जी.... ऐसा भी होता है क्या? भगवान् झूठ ना बुलवाये, फ़िर तो बड़ी इन्त्रेस्टिंग होती होगी लड़कियों की लाइफ. कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं रहा गर्ल्स होस्टल में रहने का मेरा, तो इसीलिए ये सब पता नही था. आपने बताया तो पता चला की ऐसा भी होता है. बड़े खुशकिस्मत हैं आपके जीजाजी. उन्हें तो पता भी नही होगा की उनका नाम ले ले कर, उनके चर्चे कर कर के आपने इतने साल बिता दिए. और वो बेचारी लड़कियां.. उनका तो मनपसंद शगल ही उनसे छिन गया होगा आपके जाने के बाद.

विशाल श्रीवास्तव said...

आपने अच्छी खबर ली है अभय जी की...
वैसे भी जीजत्व सरल प्राप्य नहीं होता